एक लोमड़ी ने नहर के किनारे खड़े ऊँट से पूछा “नहर का पानी कहाँ तक आता है?”
उसने जवाब दिया “घुटनों तक!”
जैसे ही लोमड़ी ने छलांग लगायी, डूबने लगी.. कभी गोते खाती तो कभी सर बाहर निकालती,
बड़ी मुश्किल से किनारे की एक चट्टान तक पहुंची ।

बाहर आते ही ग़ुस्से से बोली “तुमने तो कहा था कि पानी घुटनों तक आता है, लेकिन मैं तो पूरा डूब गयी?”
ऊँट ने जवाब दिया “हाँ पानी घुटनों तक ही आता है, लेकिन मेरे।”
हर किसी का तजुर्बा अलग है और वो उसी मुताबिक जवाब देता है, संभव है जो बातें उसके लिए फायदेमंद हो, दूसरों को नुक़सान पहुंचाए।
सिर्फ दूसरों के तजुर्बे को देखकर चलना आपको डुबो सकता है।
दूसरों की सलाह पर भी विचार करिये ।
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