Guru ji ne bhataya
मुनष्य जिस डाल पर बैठा है..उसको ही काट रहा है..
सुख प्रप्ति के लिए वह सुखों को बटोरता है..इच्छा करता है..
इच्छाओं के गुच्छे उसके दिमाग में भरे पड़े है..समझता है इच्छा पुरी होगी..तो में सुखी हो जाऊँगा..पर सुख के बदले अंसतोष मिलता है..
बड़ी इच्छा उसे इतना विचलित कर देती है जो इच्छा प्रप्ति की कल्पना का सुख उसे चैन लेने नहीं देता..या इच्छा के पीछे दौड़ते दौैड़ते शरीर की शक्ति इतनी गंवा देता है कि उसे प्राप्त नहीं कर पाता..
उसने चाहा क्या उसे मिला क्या..संतुष्टि चैन सुख निर्इच्छा होने पर प्राप्त होता है..
इच्छा करने या इच्छा पुरी होने पर नही..इच्छा को केवल इपने तक सीमित ना रखें..कि कोई अपना व्यक्ति उसके लिए सोचे..इसको ऐसा चलना चाहिए.
रजो गुणी तमो गुणी नहीं..ये तेरा खुद का रजो गुण है ..दुसरे का रजो गुण कैसे छोड़ेगा..
अपने को जान अपने को समझ..
में चाहुँ ए बी पर जुल्म न करे..बी क्युँ ना अपना निश्चय करे ..जो कोई उस पर जुल्म कर ही ना सके..
हमारे आगे जो आए उसकी नेष्टा बड़े..ना कि जुल्म ना कि..
मुजलिम.. जलिम ना देखें .. एक ही परमात्मा देखे..
ञिपुटी में आएगा तो निराकार चला जाएगा..