गुरुवाणी 011-09-2019 Wednesday🌹🌿🌹🌿🌹🌿
ये क्रोघ चंड़ालों का भी चड़ाल है..संत को चंडाल ने छु दिया..तो बहुत क्रोघ किया..
ओर दुबारा नहाने गया..चंड़ाल भी नहाने गया बोला मुझे तो चंड़ालों के चंड़ाल ने छु लिया..जो आपके अंदर आ गया था..
क्रोघ दोमुँहा सर्प है..जो खुद को भी जलाता है..
ओर दुसरों को भी जलाता है..पर खुद को ज्यादा जलाता है..
जिस जीव को चाह नही सो शाहो का शाह..
ज्ञानी को कोई चाह नहीं है पर उसका स्वागत रोज दुल्हे जैसा होता है..जहाँ जाते है स्टेज सजाया जाता है..नई नई फुलों सजी गाड़ियां लेने को तैयार रहती है..
हम हाथ जोड़ते हैं कि मिठाई हम नहीं खाते..
पर फिर भी छोड़ जाते हैं..गुरु को कुछ नहीं चाहिए ..
पर तुम क्यों कुछ खिलाना पहनाना चाहते हो..तुम्हारा अपना भाव होता है जैसे मुर्ति को भोग लगाते हो ..ज्ञानी को कुछ नहीं चाहिए..
एक दिन दादा से किसी ने पुछा दादा पानी चाहिए..
दादा बोला एक गिलास पानी के लिए हमें चाहिए में क्यों डाला..हमें कुछ नहीं चाहिए..ज्ञानी को बिन मांगे सब कुछ मिल रहा है उसकी कोई चाहना नहीं है..
तुम खाते पहनते अपनी पंसद का हो तो भगवान को भी अपनी पंसद बना लो..
ज्ञानी की माया सहज में छुट जाती है..क्योंकि ज्ञानी अंदर में अचाह हो जाता है.
.ज्ञानी सब कुछ परमात्मा के हवाले छोड़ देता है..फिर सो सहिब चिंता करे जिस उपया जग..
बाकी चिंतन तुम किसका करते हो..किसका सहारा चाहिए..
बन बन के सहारे छुटते है ये रस्म पुरानी है जग की..
जो टुटे कभी ओर छुटे ना इक तेरा सहारा काफी है..
अपने आत्म स्वरुप में रहो इच्छाऐं तुम्हें भिखारी बनाती हैं..
मेरी सतचित् आंनद रुप कोई कोई जाने रे..गीता भगवान कहते थे जब तुम प्यार की इच्छा छोड़ दोगी तब हम तुम्हें प्यार करेंगे..हर चीज को प्राप्त हुआ समझो..तभी चित शांत रहेगा..🌹🌿🌹🌿🌹🌿