गीता भगवान का मेसेज है कि मेरा मन पूरी तरह गुरु में रम जाये। जब मेरा पूरा ध्यान अपने स्वरूप में ही हो, जब मुझमें purity के सिवा और कुछ हो ही नहीं, तब कह सकते है कि मेरा पूरा मन गुरु में लग गया है।
हमें सब चीजे pure पसंद है, तो जीवन pure क्यों नहीं पसंद, विचार pure क्यों नहीं पसंद? अभी तक गुरु को हमने अच्छे से study नहीं किया है, इसलिए हम दुविधा में आ जाते है। किसी विचार में दुविधा आए तो उसकी गहराई तक जाओ ना। ऐसा कन्वर्टर फिट कर दो की अपने आप गुरु की बात का मतलब वो निकाल ले।
गुरु की हर बात में राज है। पर हमारी नजर गलतियां खोजने में है। हर वक़्त हमारी नजर बाहर है। गुरु कहते है अपने स्वरूप में मौज में रहो। जितना समय हम बचाएंगे उतना ही मजा आएगा।
गंगा नदी पृथ्वी को ना फाड़ दे इसलिए शिव ने अपने ऊपर वेघ लिया और गंगा उनसे होते हुए बही। ज्ञान भी बुद्धि direct catch नहीं कर सकती इसलिए शिव रूपी गुरु से होते हुए ज्ञान कि गंगा बहती है। जिसने अपना प्रलय किया है वो ही गंगा को अपने ऊपर ले सकता है।

आज Announcement करो दो की कोई भी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति मुझे नाराज़ या निराश नहीं कर सकती। ये आज का वचन है हम सब के लिए गीता भगवान का।
और आप बताए, हमारा मन पूरा गुरु में है इसके और क्या लक्षण है?
हरीॐ