गुरु जी ने बताया कि,,,,,,,,,
🌹माया की याद दुखदाई, गुरु की याद सुखदाई,,,,,,।
🌹हरि के नाम की ताकत से तिनका भी तर जाता है जैसे एक चींटी को अगर एक शहर से दूसरे शहर जाना हो
वो अगर किसी के समान में बैठ जाये,तो आसानी से एक शहर से दूसरे शहर पहुंच सकती है,,,,,,,,।
🌹आशा हमे इंसान बनाती है,,,,,,,,।
🌹स्वार्थी को हर अच्छी बात में बुराई दिखती है,परमार्थी को हर बुरी बात में भी अच्छाई दिखती है,,,,,,,।
🌹प्रभु ने हजारों सुख दिए है,उन पर से दृष्टि हटाकर एक दुख दिया है
मतलब एक वस्तु की कमी होती है उसे ही क्यों गाते रहते है,,,,,,,।
🌹हर बात में धीरज रखें ,बड़ी चीज चाहिए तो बड़ा धीरज चाहिए,
झोपड़ी दो दिन में बन जाती है,लेकिन महल बन ने में समय लगता है,,,,,,।
🌹हमारे सुख का आधार पदार्थ नही ,, बल्कि परमात्मा होना चाहिए,,,,,,,,,।
🌹जिस वक्त किसी की गलतियां दिखने लगे समझो अज्ञान आने लगा मन मे वापस,,पर दोष देखना बन्द कर दे,,,,,,,।
🌹शुक्राने सतगुरु जी के हरि ॐ,,,,,,,,।
सबकी प्रकृति एक नहीं हो सकती..जो 12 महीने गुरु के पास आकर रहे..
अगर तुम पुरुष परमात्मा है तो प्रकृति तुम्हारी दासी होनी चाहिए..अपना पुरुषपना भुला कर तुम प्रकृति के दास बनकर बैठे हो..तो भगवान से नहीं जुड़ सकोगे..
एक ने पिरकृति को वश में किया है ..दुसरा प्रकृति का गुलाम बनकर बैठा है..जब तक प्रकृति से पुरी तरह से नाता नही तोड़ा है..
तब तक भगवान से नहीं जुड़ सकते..प्रकृति है ही नहीं. .है हू तु ..ब्रह्न के सिवा कुछ बना ही नही है..
लोकारीत मोह डर ओर इच्छाओं में फंसे इंसान को मन ने ऐसा ढगा है..कि तेरी प्रकृति ऐसी नहीं है कि तु गुरु के साथ रह सके…पहले विकारों से दुर हटो फिर गुरु तुम्हारे बंघन काटने को ही बैठा है..
मकड़ी की तरह जाल बनाकर उसमें फंसकर चिल्ला रहे हैं..कि हमारी प्रकृति ही ऐसी है कि हम निकल ही नहीं पा रहे..
बेटी मेरी है या तुम्हारी..तन मन घन देकर फिर कंजुस की तरह वापस ले लेते हो..ये मोह है..बनी बनाई बन रही अब कुछ बननी नही..
ऐसा हो ..ऐसा ना हो..ये भी इच्छा है..शुभ ओर अशुभ इच्छा का त्यागी ही मुझे परम प्यारा है..तुम्हारी चिंता किसे क्या होगा ..कल जो पैदा ही नही हुआ है..उसकी चिंता कर रहे हो..दिल की चटनी बनाकर देखो को तुम्हें पता चलेगा..कि तुम्हारा भविष्य क्या है..भविष्य को बुलंद करने वाला रोशन करने वाला तुम खुद है..
तुम्हारे खोटे एर डर वाले ख्याल हू तुम्हें अंघेरे की तरफ घसीट कर ले जाएगें..
जब तक गुरु को बाहर मानोगे तब तक नरक में ही भटकते रहोगे..अपने सत्ते घर्म में पक्के रहो कि में क्या हुँ..तो अधी व्यघि उपाघि सभी रोगों ले छुट जाएगें..अंहकार का रोग ही सभी रोगों की जड़ है..ओर ॐ सतगुरु प्रसाद ही सभी रोगों की दवा है..ये दवा आजमाएगें तो पहले से भी तगड़े हो जाएगें..घीरज मन गा मेरे मन कबुतर..
गुरु इंसाफ करने वाला है.. वो अंघे मोह वाली दया नहीं करता है..इसको तुम कठोर दिल वाला समझते हो..यहीं पाप है..निराकार पर विश्वास रखो..वो तुम्हें कभी भी नहीं छोड़ेगा..🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿