Guru vaani 28 May 2019 : गुरु जी ने बताया कि,,,,,,,
🌷ज्ञानी अपने अकेलेपन को एकांत का रूप देकर अपने आनंद में रहता है,,,,
संसारी अकेलेपन में ख़ुद को दुखी समझता है,,,,,,,,।
🌷सबसे प्रेम करने का सबकी सेवा करने का शौक जिंदा रखेंगे तो
जीवन मे कोई शोक नही होगा,,,,,,,।
🌷सेपेरेशन बिकम डिप्रैशन,,,, अकेलेपन में दुख है ,सबके साथ हर समय उत्सव होता है,,,,,,,।
🌷बाकी संतो ने अकेले तपस्या की,गौतम बुद्ध ने खुद के साथ पूरे संघ को भी तपस्या कराई,,,,आप जपे औरा नाम जपावे,,,,,,,,।
🌷हमारा “वेश परिवेश “पसंद आ सकता है सबको लेकिन “आवेश” किसी को भी पसंद नागी आएगा,,,,,,,।
🌷क्रोधी और अहंकारी हमेंशा अकेला ही रहता है,,,,,,।
🌷क्रोध क्यों आता है ? जब जब कामना पूरी नही होती तो क्रोध आता है,,,,,,,,।
🌷क्रोधी की तुलना कोढ़ी के साथ कि गई है,,,,,सत्संग में आकर हमारा क्रोध शांत हो जाता है,,,,,,,,।
— Guru vaani 28 May 2019
🌷शुक्राने सतगुरु जी के हरि ॐ,,,,,,,।
एक भगवान् को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे निहाल।
कौन राजी है, कौन नाराज; कौन मेरा है, कौन पराया, इसकी परवाह मत करो। वे निन्दा करें या प्रशंसा करें; तिरस्कार करें या सत्कार करें, उनकी मरजी। हमें निन्दा-प्रशंसा, तिरस्कार-सत्कार से कोई मतलब नहीं। सब राजी हो जायँ तो हमें क्या मतलब और सब नाराज हो जायँ तो हमें क्या मतलब?
केवल एक भगवान मेरे हैं- इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है।
इसलिये भगवान् को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो। न जीने की इच्छा हो, न मरने की इच्छा हो। न जाने की इच्छा हो, न रहने की इच्छा हो।
एक भगवान् से मतलब हो। एक भगवान् के सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं। अनन्त ब्रह्माण्डों में केश जितनी अथवा तिनके जितनी चीज भी अपनी नहीं है। हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा कुछ था ही नहीं, हमारा कुछ होगा ही नहीं, हमारा कुछ हो सकता ही नहीं। इसलिये एक भगवान् को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे।

हमारी खुशी हमारी सोच पर निर्भर है
हम शिकायत कर सकते हैं कि गुलाब की झाड़ियों में कांटें हैं
…. या खुश हो सकते हैं कि काँटों की झाड़ियों में गुलाब हैं…