ये सतसंग एक कल्पवृक्ष है..
जैसा भाव रखोगे वैसा मिलेगा..माया का उपयोग करो..जीओ अमीर होके मरो गरीब होके..
जीओ तो ऐसे जीओ जैसे सब कुछ तुम्हारा है..मरो तोे ऐसे मरो किजैसे तुम्हारा कुछ भी नही है..गुरु तुम्हें रोज उठाने की कोशिश करता है..
जब हम राग रहित हो जाते हैं..तो सम्बंघ स्वत:ही छुट जाते हैं..संन्यासी बाहर से त्याग करते हैं..पर अंदर से माया नहीं छुटती है..
उसको अंदर में पता है कि ये चीज छोड़ कर आया हुँ..
मन की आदत है..जिस चीज को छोड़ना चाहता है..उसकी तरफ ओर ज्यादा घ्यान जाता है ..
बोला बंदर का घ्यान नहीं करना तो बंदर ही दिखता रहा..
तो किसी चीज को छोड़ा नहीं बल्कि उसकी जगह नई आदत डाल दो..
सतसंग की आदत डाल दो.
गुरु हमसे कुछ छुड़ाता नहीं है..
बस कहता है तुम मेरे हो..ओर जब उसके हो जाते हैं..तो माया आपने आप छुट जाती है ..दुलहा दुल्हन मिल गए फीकी पड़ी बारात..
पाना चाहते हो भगवान तो छोटी छोटी बातों में क्यों अटक जाते हो..तुम अंदर से छुट जाओ..
बाकी जिसको जोे करना होगा करेगा..
तुम गुरु की फोटो मांगते हो..
पर हम कहते हैं.कि ऐसा जीवन बनाओ .कि तुमको देख कर लोग गुरु का दर्शन कर ले ..
गुरु तुम्हारा जीवन बदल देता है.
विवेकानंद ने कहा
में आराम से मौसमी का गुदा खा रहा हुँ. .दुनिया वाले छिलको पर झगड़ रहे हैं..
ज्ञानी अपने तत्व को पकड़कर उसी में आंनदीत रहता है..
आंनद स्ञोत बह रहा पर तु उदास है..अचरज के जल में रह कर भी मछली कोे प्यासा है..
गुरु तुम्हारे अंदर की कमी निकाल देता है..
माया में घुमा फिराकर दिखा देता है..कि सुख कहीं ओर नहीं तुम्हारे अंदर है..
गीता भगवानने माथेरन भेज दिया..दादा ने सब जगह घुमाया..
पर हम सब के अंदर तो गीता भगवान की लौ लगी रहती थी..कि वो कब आएगें..
दादा से सही पुछते रहते थे ..कहीं घुमने फिरने में मजा नहीं आता था..
रोज ट्रेन देखने जाते थे..कि शायद आज आ जाए.भजन गाते जाते थे ..
अरी ओ शोख कलियों मुस्करा देना वो जब आये..फिर गीता भगवान 15 दिन बाद आए..
तब जाकर मन शांत हुआ..ऐसी लग्न लगी रहती थी..कि माया कैसे छुट गई पता ही नहीं चला..
दादा ने सबको ब्रह्मस्ञोति ही नही ब्रह्मनिष्ट भी बना दिया..
गुरु हमारे अंदर की छिपी हुई कलाओं को प्रकट करता है. .
मिट्टी में इतनी ताकत है
जो मिटाती भी है..ओर गुणों को भी प्रकट करती है..मिट्टी खुद मिट्टी हुई है..तभी किसी को मिटा भी सकती है. .
गुरु हमारे अंहकार को मिटाता है..ओर गुणों को प्रकट करता है..गुरु हमें ड़ाटता भी है को हमें संवारने के लिए..
जैसे माँ की मार में भी बच्चे की संवार होती है..गुरु हमारे लिए सब कुछ करता है..सुख से बिठाता है..प्रेम करता है..
ज्ञान सुनाता है तो हमारा भी फर्ज है कि हम गुरु के बताए मार्ग पर चले..जैसा गुरु चाहता है..भोले भाव मिले रघुराई..चतुराई से चतुर्भुज नहीं मिलता.
गुरु बुद्घु राम को भी शुद्घ राम बना देता है..उनसे भी परमात्मा का काम होेता है..🌹🌿🌹🌿🌹🌿