🌷कोई परिस्थिति आती है तो ज्ञानी सोचता है कि अच्छा है भगवान के करीब हुँ..
अज्ञानी हाय हाय करता है..गुरु सबको हर बात के लिए तैयार करता है..गुरु सच को सच करके जानता है..
अज्ञानी विषय के विष को अमृत समझ कर खाता रहता है..अज्ञानी एक एक मिनट में फिसलता है..सुख ढुढ़ता है..
पर सुख मिलता नहीं है..
🌷ये पुरा जगत एक विघालय है..जिसको सीखना होता है वो हरेक से सीख लेता है..
🌷सारी दुनिया कर्मकांड़ में खुश है..सब करने में पड़े हैं..
ज्ञानी कहता है कुछ ना करो..में कुछ करने वाला हुँ ही नही..
🌷ज्ञानी सबसे सीख लेता है..दञातरे ने 24 गुरु किये..हरेक से कुछ ना कुछ सीखा..
पृथ्वी से सीखा वो सबका भार सहती है..सहनशीलता सीखी..आकाश से निर्लेपता सीखी..कैसे किसी से कोई मतलब नहीं होता उसे..
🌷सोचने को लाख बातें हैं..पर ज्ञानी सब परमात्मा पर रख देता है..
कुछ नही सोचता..सोचया सोच ना होई जे सोचे लख बार ..
घड़ी की सुई 12 बजे ही मिलेगी ..सबने नया साल मनाया..जब सुईयां मिली..
🌷कर्तापन ही अज्ञान है..जब एक शक्ति पहले से ही कार्य कर रही है..
तो हम अपने को कर्ता क्यों समझे..जमीं चल रही है आसमां चल रहा है ये किसके सहारे जहाँ चल रहा है..
निऱाकार का खेल बहुत अच्छा चल रहा है..जीभ टेस्ट करके बता देती है ..
नाक सुंघ कर बता देती है..हम अपनी इच्छा परमात्मा से मिला दे..
🌷मेरे पास कुछ नहीं है ओर मुझे कुछ नही चाहिए..
में ओर मेरे में पुरा जीवन क्यों लगा देते हो..बीज अपना बलिदान कर देता है तब उससे वृक्ष बनता है..फिर उससे फल तक बन जाते हैं..
🌷संन्यासी बाहर से आग के रंग के कपड़े पहनते हैं..पर गुरु तुम्हारे अंदर आग देता है..
कोई ऐसी आग लगा दे ये तन मन जीवन सुलग उठे..
🌷दादा ने कहा इच्छा माञम् अविघा.. तिल माञ इच्छा भी अज्ञान है..
थोड़ी सी इच्छा भी कमजोर बना देती है..गुरु हमें पहले से ही ज्ञान की रोशनी देता है..इससे जीवन में जो भी अनउपयोगी हैं..उन्हें अलग कर दो..
हम इच्छा वश अलग नहीं होते..बार बार दुखी होते हैं..
पर उससे छुट नहीं पाते..चाहते हैं आनंद पर अंदर इच्छाओं के छेद लगे पड़े हैं..जिनसे आंनद बह जाता है..
🌷जहाँ गुरु मिला वहाँ माया पर फुल स्टोप लग जाना चाहिए..
माया एक झटके में छुट जाती है..घीरे धीरे नहीं छुटती है..
विवेकानंद ने एक झटके में माया छोड़ दी..फिर कुछ भी हुआ ..उसे असर नहीं हुआ..इस मार्ग से पीछे नहीं हटा..
🌷जब हम परमात्मा के कार्य में लग जाते है ..
तो परमात्मा हजारों रुपों में हमारे कार्य करता है..प्रकृति में अचानक कुछ भी हो सकता है.तब सब कहते है भगवान का आधार लो..तो क्यों नही़ं पहले आधार ले लेते हो भगवान का..
ज्ञानी के कर्म उसे परेशान नहीं करते..कर्म तीन प्रकार के होते हैं..ज्ञानी के क्रियाामान कर्म समाप्त हो जाते है..वो अपने को कर्ता नहीं मानता इसलिए..संचित कर्म पड़े रहते हैं. .
वो भक्ति से बिना अपने में माने खत्म हो जाते है .. रह जाते हैं प्रारब्घ कर्म वो ज्ञानी आराम से काट लेता है..उसे कोई हालत लगती नही है..क्योंकि अपने को परमात्मा के हवाले कर दिया..
अगर जीवन में कांटे भी आये तो उनका भी स्वागत करो ..कांटे ही किया करते हैं फुलों की हिफाजत .
🌷परमात्मा को अपनी माँ मान ले तो क्या माँ कभी अपने बेटे के साथ गलत होने देगी..
जहाँ भी बैठे हो ..अपने के जाँचना कि सारे दिन में क्य़ा क्या किया..जो मिला है उसकी प्रशंसा करते चलो..क्या जाता है किसी की खुश करने में..कोई भी कर्म तुमसे हो जाए तो याद न करो..
🌷एक औरत संत को दुध देने जा रही थी..दुध में मलाई गिर गई जो बेटे के लिए रखी थी..
मुँह से निकला तौबा ..संत ने कहा में ये दुध नहीं पियुँगा इसमें कुछ पड़ा है..ये तौबा वाला दुध है…
🌷हरेंक को फ्री छोड़ दो..अगर ज्यादा पहरा लगाओगे..तो बेटा बेटी छुप छुप कर कर्म करेगे..
फिर तुम्हारे समाने कर्म आएगें..तब बुरा लगेगा..स्वंयवर का जमाना है कोई अपने मन का ढुँढ़ भी लेे तो सोचो जान बची लाखों पाए..कम से कम तुम को दोषी नहीं बनोगे..सबको सबकी इच्छा पर छोड़ दो..🌹🌿🌹🌿🌹🌿