हवाई जहाज़ों की गति अलग अलग कलाओं में अलग अलग होती है. जैसे टेक ऑफ के समय गति काफी कम रहती है उसी तरह लैंडिंग के समय भी गति कम की जाती है. लेकिन क्रूज़ के समय करीब करीब एक सामान गति रहती है.
ये गतियाँ भी छोटे जहाज़ों और बड़े जहाज़ों की अलग अलग होती हैं. प्रोपेलर वाले छोटे जहाज धीमे उड़ते हैं और जेट वाले तेज़. इसीलिए ए टी आर का जहाज कोलकाता से गौहाटी प्रायः डेढ़ घंटा ले लेता है और एयरबस ३२० करीब ५० मिनट में पहुंच जाता है.

आइये अधिकतर पसंदीदा जहाज़ों की गतियाँ देखते हैं. जंबो जेट बोइंग ७४७ विशाल जहाज है और ३५००० फीट की ऊंचाई पर प्रायः ५६७ मील प्रति घंटा यानी..९०५ किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से उड़ता है.
एक बोइंग ७३७ जहाज टेक ऑफ के समय करीब १५५ से १७८ मील प्रति घंटा यानी २४८ से २८५ किलोमीटर प्रति घंटा से उड़ता है. ऊपर क्रूज़ में इसकी गति बढ़ जाती है. जो प्राय ७०० से ८०० किलोमीटर पर्त घंटा हो सकती है.
लैंडिंग के समय गति का अनुमान रन वे से प्रायः २० से २५ किलोमीटर दूर से ही कर लिया जाता है और उसी गति पर लैंडिंग करायी जाती है. कौन सी गति ठीक होगी यह अनुमान कई कारकों पर निर्भरकरता है जैसे कि रन वे की लम्बाई, सूखा या गीला रन वे, हवा का रुख तथा जहाज का अपना वजन आदि..बोइंग ७७७ कि लैंडिंग के समय गति २५५ किलोमीटर प्रति घंटा के आस पास होती है.
अब आप सोच रहे होंगे कि अलग अलग कलाओं में अलग अलग गति क्यों ? टेक ऑफ के समय, जहाज जीरो गति से टेक ऑफ गति पर पहुंचना रहता है. रनवे के भीतर चल कर ही उड़ना है तथा भरा हुआ बोझ उठा ना है. ऐसे में कम से कम गति में ही उड़ना रहता है. तो फिर इसे उड़ान इतने कम गति में कैसे मिलती है ? इस एक्स्ट्रा लिफ्ट को पाने के लिए इंजन को पूरे पॉवर से चलाया जाता है ताकि उठाने की गति पायी जा सके. दोनों तरफ के डैने या पंख (विंग्स) में हाई लिफ्ट उपकरण लगे होते हैं जिन्हें फ्लैप तथा स्लेट कहते हैं. इनको बढ़ा लिया जाता है. इससे विंग्स की चौडाई बढ़ जाती है और अधिक लिफ्ट मिल जाती है, जिससे कम दूरी पर ही जहाज टेक ऑफ कर लेते हैं.
लेकिन विंग्स का एरिया बढ़ा देने से घर्षण बढ़ जाता है और जहाज बहुत ईंधन खाता है. अतः कुछ ऊपर उड़ कर फ्लैप और स्लेट भीतर कर लेते हैं ताकि ईंधन कम लगे. ऊपर जाकर हवा का घर्षण भी कम हो जाता है जिससे गति बढ़ सकती है.
कभी कभी जिस रास्ते से आप जा रहे होते हैं हवा का रुख उसी तरफ होता है. इससे जहाज अपने गंतव्य स्थान पर जल्दी पहुँच जाता होगा. लेकिन हवा जब उलटी रहती है, जहाज को मशक्कत करनी पड़ती है घर्षण के विरुद्ध और उसे गंतव्य स्थान पहुँचने में देरी लग जाती है. आप ने देखा होगा दिल्ली और कोलकाता के आने जाने में कभी कभी ३० /४० मिनट का हेर फेर हो जाता है.
जहाज़ों की गति को मैक नंबर में भी नापा जाता है 1 मैक आवाज की गति के बराबर बर होता है. यात्री विमानों में कांकोर्ड ही ऐसा विमान था जो एक मैक से ऊपर की गति ले सकता था लेकिन अभी सारे यात्री जहाज साउंड की गति से कम चलने वाले हैं.
सैनिक जहाज़ों की यहाँ चर्चा नहीं की गयी है.