मन मेहनत करना नहीं चाहता है..सोचता है माँ बाप कमाएं हम खाएं..जब तक मेहनत नहीं करोगे कुछ नहीं पाओगे..
गुरु तुमको देह का आघार नही देता है..यहाँ आते हो अपने सत्य को जानने..
इसके लिए अपना पुरुषार्थ करो..
दादा भगवान ने बोला ये ज्ञान गृहस्थ का है वहीं से मेहनत करके निकलो..
धर को आश्रम बनाओ..वही बैठ कर सतसंग करो..
पहले हम भी ऑदर मे सतसंग करते थे..
ज्ञान ज्योति से ज्योति बढ़ती जाती है..बाकी आश्रम में रह कर भी एक दुसरे का कर्म देखते रहते हैं..
दादा ने ॐ मड़ली में देखा..कि जो औरतें धर छोड़ कर आ गई थी..
पहले बड़े आराम से खाया पीया..फिर पैसे खत्म हो गए तो गुरु ने कहा धर धर जाकर सतसंग करो..
वहाँ से जो मिले लेकर आओ..
तो किसी को सतसंग करना आता था वो अच्छे कपड़े पहनते थे..तो जिनके कपड़े अच्छे नहीं होते थे..
वो रात में कपड़े काट देती थी..
आपस में लड़ाई होती थी..दादा ने इससे सीखा की किसी से धर नहीं छुड़ना है..
धर में ही हम मिट कर चल सकते हैं..
ओर जो लड़कियां मायके में नहीं मिट पाती थी माँ बाप शादी करा देते थे..कि वहाँ झुकना आएगा..
एक लड़की एक पार से सब कुछ कर लेती थी तुम्हें को भगवान ने सब अंग दिये हैं..को क्यों कर्म में ढीले हो..
विदेश में एक अस्पताल है जहाँ रोज बोलने को कहा जाता है..कि में पहले से बेहतर हुँ..ओर मरीज बहुत जल्दी स्वस्थ हो जाता है..
कहीं भी रहो सब से तालमेल बना कर रहो. ऐसा कुछ मत करो कि किसी को तकलीफ पहुँचे..सभी जड़ चेतन में भगवान देखो..